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Stubble burning: पंजाब में पराली जलाने के मामले 36,000 से घटकर 10,000, जुर्माना वसूलने की प्रक्रिया तेज

Stubble burning: पंजाब में इस वर्ष पराली जलाने के मामलों में 70 प्रतिशत की कमी आई है। बुधवार को यह संख्या 10,000 के आंकड़े को पार कर गई, लेकिन पिछले वर्ष की तुलना में यह बहुत कम है। राज्य के मुख्य पर्यावरण इंजीनियर डॉ. कृष्णेश गर्ग ने बताया कि इस साल पराली जलाने के मामलों में काफी कमी आई है। इस वर्ष अब तक करीब 10,000 मामले दर्ज किए गए हैं, जबकि पिछले साल 36,000 से अधिक मामले रिपोर्ट हुए थे, जो सैटेलाइट इमेजेज से प्राप्त हुए थे।

डॉ. कृष्णेश गर्ग द्वारा कार्रवाई का विवरण

मुख्य पर्यावरण इंजीनियर डॉ. कृष्णेश गर्ग ने बताया कि इस बार 10,000 मामलों में से करीब 4,900 मामलों में कार्रवाई की गई है। किसानों पर करीब ₹1.84 करोड़ का जुर्माना लगाया गया है, जिसमें से ₹1.13 करोड़ की राशि पहले ही वसूल कर ली गई है। उन्होंने यह भी बताया कि इस वर्ष पराली जलाने के मामले मुख्य रूप से संगरूर और मालवा  क्षेत्र से सामने आए हैं, साथ ही पटियाला जिले में भी कई मामले सामने आए हैं।

Stubble burning: पंजाब में पराली जलाने के मामले 36,000 से घटकर 10,000, जुर्माना वसूलने की प्रक्रिया तेज

जिले प्रशासन और पुलिस का संयुक्त अभियान

डॉ. कृष्णेश गर्ग ने बताया कि इस बार जिले प्रशासन और पुलिस विभाग ने पराली जलाने की रोकथाम के लिए कड़ी कार्रवाई की है। इस वर्ष करीब 9,000 नोडल अधिकारियों को मैदान में तैनात किया गया था, जो सभी जिलों में पराली जलाने की निगरानी कर रहे थे। इन अधिकारियों ने प्रभावी रूप से कार्रवाई की, जिसके परिणामस्वरूप पराली जलाने के मामलों में कमी आई।

बुधवार को 179 नए मामले दर्ज

बुधवार को पंजाब में पराली जलाने के 179 नए मामले रिपोर्ट हुए। इसके साथ ही इस सीजन में कुल पराली जलाने के मामलों की संख्या 10,104 हो गई। सबसे अधिक मामले फिरोज़पुर और संगरूर जिलों से रिपोर्ट हुए, जिनमें प्रत्येक जिले से 26 मामले सामने आए। इसके अलावा मुक्तसर से 20 मामले, तरन तारन से 15, फरीदकोट से 14, फाजिल्का से 10, मोगा से 9, जालंधर, लुधियाना, बठिंडा और बरनाला से 8 मामले आए। मानसा से 5, मलेरकोटला और कपूरथला से 4-4 मामले आए। अमृतसर से 3 और पटियाला से 2 मामले सामने आए। गुरदासपुर और SBS नगर से एक-एक मामला रिपोर्ट हुआ।

संगरूर जिले में सबसे अधिक मामले

मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान के जिले संगरूर ने इस सीजन में 18 नवम्बर तक 1,647 मामलों के साथ पंजाब में सबसे अधिक मामले दर्ज किए हैं। इसके बाद फिरोज़पुर में 1,189 मामले हैं, जबकि तरन तारन में 802, अमृतसर में 703 और बठिंडा में 670 मामले रिपोर्ट हुए हैं। इसी तरह मुक्तसर में 668, मोगा में 596, मानसा में 560, पटियाला में 536, फरीदकोट में 470, कपूरथला में 321, लुधियाना में 246, फाजिल्का में 233 मामले सामने आए हैं।

पराली जलाने पर सख्त कार्रवाई की आवश्यकता

पंजाब सरकार और पर्यावरण विभाग की कोशिशों के बावजूद पराली जलाने के मामले अब भी एक गंभीर समस्या बने हुए हैं। राज्य में प्रदूषण पर नियंत्रण पाने के लिए सरकार को और अधिक कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि आने वाले वर्षों में पराली जलाने के मामले पूरी तरह से समाप्त हो सकें। इसके लिए किसानों को जागरूक करने के अभियान, बेहतर मशीनरी और वित्तीय सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है, ताकि वे पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझें और पराली जलाने से बचें।

राज्य सरकार की योजनाएँ और किसानों को सहायता

पंजाब सरकार ने किसानों को पराली जलाने से बचाने के लिए कई योजनाएँ बनाई हैं। किसानों को पराली जलाने के बजाय अन्य तरीकों से पराली को नष्ट करने के वैकल्पिक उपायों के बारे में जागरूक किया जा रहा है। इसके अलावा सरकार किसानों को कृषि मशीनरी उपलब्ध कराने के लिए भी विभिन्न योजनाएँ चला रही है, ताकि वे मशीनों का उपयोग करके पराली बचा सकें।

जुर्माना वसूलने की जानकारी

इस सीजन में पराली जलाने के 10,000 से अधिक मामलों में जुर्माना वसूल किया गया है। इनमें से करीब 4,900 मामलों में कार्रवाई की गई है और जुर्माने की राशि ₹1.13 करोड़ तक पहुँच गई है। यह जुर्माना किसानों को उनकी जिम्मेदारी का एहसास दिलाने और पराली जलाने की समस्या को गंभीरता से लेने के लिए लगाया गया है।

पराली जलाने के प्रभाव और समाधान

पराली जलाना न केवल पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डालता है, बल्कि यह किसानों के स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचाता है। इसके अलावा, पराली जलाने से वायु प्रदूषण बढ़ता है, जो राज्य की जनसंख्या के लिए खतरनाक है। इसलिए, इस समस्या का समाधान करने के लिए सरकार को किसानों के साथ मिलकर काम करना होगा और उन्हें अन्य उपायों के लिए प्रेरित करना होगा।

पंजाब में इस सीजन में पराली जलाने के मामलों में 70 प्रतिशत की कमी आई है, लेकिन समस्या पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है। पंजाब सरकार और पर्यावरण विभाग की संयुक्त कोशिशों के बावजूद, इस मुद्दे पर और काम करने की आवश्यकता है। सरकार को और अधिक जागरूकता अभियान चलाने होंगे, ताकि किसानों को इस प्रक्रिया से बचने के लिए प्रेरित किया जा सके और वे वैकल्पिक उपायों को अपनाएँ। तभी हम इस समस्या का स्थायी समाधान पा सकेंगे।

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